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ग्लोबल वार्मिग

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हमारे आसपास के वातावरण का हमारे स्वास्थ्य पर निश्चित और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी  के बदलते वातावरण में जिस बात को लेकर आज हर कोई चिंतित है वह है पृथ्वी के वातावरण का लगातार बढ़ता तापक्रम या ग्लोबल वार्मिंग।

क्या है ग्लोबल वार्मिग?

ग्रीनहाउस प्रभाव

ग्रीनहाउस, कांच की दीवारों से बना ऐसा स्थान होता है जिसमें शीत प्रदेशों में भी उष्ण कटिबंधीय जलवायु में पनप सकने वाले पेड़ पौधे उगाये जा सकते हैं। इन स्थानों में कांच की दीवारों मे से होकर सौर ऊर्जा  प्रवेश तो कर  जाती है  पर पौधों व अन्दर की मिट्टी से परावर्तित होकर जब ये आस-पास के वातावरण में आती है तो इन कांच की दीवारों से होकर ये ग्रीनहाउस के बाहर वापस नहीं निकल पाती है। इससे इस ग्रीनहाउस का तापक्रम बढ़ जाता है जिससे उष्ण कटिबंधीय जलवायु में पनप सकने वाले पेड़  पौधे भी इस ग्रीनहाउस में आसानी से पनप जाते हैं। प्रकृति में भी ये ग्रीनहाउस प्रभाव  देखने  को मिलता है पर प्रकृति  में कांच की दीवारों  का काम करतीं है पृथ्वी के वायुमंण्डल में पाई जाने वाली कुछ गैसें, जिन्हें `ग्रीनहाउस गैसें´ कहा जाता है।

ग्रीनहाउस गैसें

पृथ्वी के वायुमण्डल में ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करने प्रमुख कारक हैं, जल वाष्प  कार्बन डाइ आक्साइड ओजोन, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड, हैलाजेनेटेड हायड्रोकार्बन्स आदि।

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हमने की है छेड़-छाड़

• आज से 20 हजार साल पहले के  वातावरण में कार्बन आडआक्साइड की वायुमडल में सांद्रता करीब दो प्रति दस हजार भाग थी। आज ये करीब 3.5  प्रति दस हजार भाग है और इसके 21 वीं शताब्दी के मध्य तक 6 प्रति हजार भाग हो जाने की संभावनायें हैं, इसकी वजह है पेट्रोल चालित वाहनों में बेतहाशा वृद्वि और परम्परागत ईंधनों का प्रयोग और वनों व पेड़ों की अंधाधुंध कटाई। ऐशो आराम की चीजें बढ़ने से प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत बढी जिसके उत्पादन के लिये कोयले की बहुत सारी अतिरिक्त मात्रा का प्रयोग करना पड़ा।

• मीथेन गैस जैविक कचरे पर आक्सीजन रहित वातावरण में जीवाणुओं की क्रिया  के फलस्वरूप बनती है। पिछिले दो सौ वर्षों  में मीथेन की वायुमण्डल में मात्रा करीब दो गुनी हो गई है।

• नाइट्रस आक्साइड की मात्रा में करीब पिछिले 300 वर्षों में वायुमण्डल में 8 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

• हैलोजेनेटेड हायड्रोकार्बन्स पूरी तरह से उद्योगों की ही देन हैं। इनका उपयोग  रेफ़्रीजेरेटर्स व एयकंडीशनिंग उपकरणों के निर्माण में होता है। इनमें सबसे चर्चित है क्लोरोफ्लोरोकार्बन 12 और 11।

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बदलता वातावरण और भॉति-भॉति के रोग

• वायुमण्डल का तापक्रम  बढ़ने के साथ-साथ वायु प्रदूषण भी बढ़ता है जिससे सांस की तकलीफे बढ़ जाती हैं।

• भूस्खलन और बाढ़ से एक ओर जहां बहुत सारी जानें जा सकती है वहीं दूषित जल से फैलने वाली बिमारियों  की संख्या बढ़ सकती है।

• वायुमण्डल का तापक्रम  बढ़ने  से कई बीमारियों जो पहले कुछ क्षेत्रों में नहीं पाई जाती थी वे भी उन क्षेत्रों में फैल सकती हैं। उदाहरण के लिये डेंगू बुखार फैलाने वाले मच्छर आम तौर पर समुद्र तल से 3,300 फीट से अधिक ऊंचाई  वाले स्थानों पर नहीं पाये जाते थे पर अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये कोलिम्बया में 7,200 फुट ऊंचाई  तक बसे स्थानों में भी पाये जाने लगे हैं।

• कीट-पंतगों या मच्छर-मक्खियों  द्वारा फैलने  वाले रोग, चूहों द्वारा फैलने वाले रोग जो पहले योरोप व अमेरिका महाद्वीप में बहुतायात नहीं पाये जाते थे उनकी संख्या में अब वहां भी निरंतर वृद्धि हो रही है।

• मलेरिया भी आजकल उन पर्वतीय क्षेत्रों में भी लोगों को अपना शिकार बना रहा है जिनमें पहले उसका होना असंभव माना  जाता था यथा हिमाचल प्रदेश नागालैण्ड इंडोनेशिया के पर्वतीय क्षेत्र आदि। एक अनुमान के अनुसार सन् 2070 तक विश्व के 60 प्रतिशत भागों में मलेरिया पनप सकने के लिये अनुकूल परिस्थितियां बन जायेंगी।

• वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड और पराग कणों की मात्रा बढने से विभिन्न प्रकार की एलर्जी व दमे के रोगियों की संख्या बढ़ सकती है।

ग्रीनहाउस गैसों की उत्पत्ति को कम करने के लिये कुछ मुख्य उपाय

• विद्युत उत्पादन के लिये कोयले के स्थान पर प्राकृतिक गैस को ईधन तरह की पावर प्लांट में उपयोग करें और विद्युत ऊर्जा को किफायत से खर्च करें।

• ऊर्जा के गैर पम्परागत स्रोतों, जैसे कि पवन ऊर्जा, हाइड्रो इलेक्टिªक ऊर्जा और सौर ऊर्जा को प्रमुखता से प्रयोग किया जाये।

• उद्योगों में ऊर्जा की खपत में कटौती करें। ऐसे उपकरणों का ही उपयोग करें जो ऊर्जा की बचत करते हों। पुराने हो चुके उपकरणों को नियम से बदलते रहें।

• आवश्यक चीजों को रिसाइकिल करने की प्रक्रिया अपनायें किसी उत्पाद को रिसाइकिल करके पुन: बनाने में उसे नये सिरे से बनाने की अपेक्षा काफी कम  ऊर्जा खर्च होती है।

आम आदमी की भूमिका है काफी महत्वपूर्ण

सामान्य जन इस त्रासदी को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जैसे कि-

• एक व्यक्ति एक कार के स्थान पर कार पूलिंग या सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करें, वाहनों की समय से ट्यूनिंग करायें। पुराने हो गये वाहनों का प्रयोग बंद करें।

• पुराने प्रकार के बल्वों के स्थान पर नये सी0एफ0एल0 या एल0ई0डी0 बल्व ही प्रयोग  करें।

• ऐसे उपकरणों का ही उपयोग करें जो ऊर्जा की बचत करते हों। ऊर्जा की खपत में कटौती करें।

• टेलीविजन कम्प्यूटर व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को उपयोग के पश्चात पूरी तरह से बन्द कर दें, उन्हें स्टैण्डबाई मोड पर न छोड़ें।

•  परम्परागत ऊर्जा के स्थान पर कुकिंग गैस या सोलर कुकिंग का प्रयोग करें।

• जहां कहीं खाली और उपयुक्त जगह दिखें वहां पेड़ लगायें।

• जल की सुरक्षा व संचय करें और इसे किफायत से प्रयोग करें।

• बीमारियों के प्रसार के प्रति जागरुक रहें। इनके खिलाफ उपलब्ध टीकों व प्रतिरोधक उपायों को अपनायें।

• जन साधारण में ग्लोबल वार्मिंग व इसके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता फैला कर एक जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय दें।

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