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रजोनिवृति के समय अपने परिवार के साथ सामंजस्य कैसे बनाएँ?

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पिछले तीस या उससे अधिक वर्षों से आप हर माह जिन 4 दिनों को झंझट मान कर बिताती चली आई हैंवह सब समाप्त हो गया। पर क्या उनका जाना आपके मन पर कोई निशान छोड़ गया है? रजोनिवृति के समय जहॉं आप शारीरिक रूप से एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ चुकी होती हैं,वहीं बदलते दायित्वों के साथ बदलने वाली आपकी मानसिक स्थिति भी एक नया मोड़ ले चुकी होती है। अब तक आप एक जिम्मेदार महिला हो चुकी होतीं हैं,जिसके फैसले अब अंतिम होते हैं। एक ऐसी महिला जिससे कुछ न कुछपाने वाले बढ़ते जा रहे होते हैं और जिसे कुछदेने वाले उत्तरोत्तर कम होते जा रहे होते हैं। यह सच है कि रजोनिवृति एक सामान्य व अनिवार्य प्रक्रिया है परन्तु फिर भी ये कुछ न कुछ मानसिक परेशानियॉं अवश्य पैदा करती है।                     

बदलते पारिवारिक दायित्व

यही वह वक्त होता है जबकि आप को महसूस होने लगता है कि आपके बच्चे बड़े हो गये हैं। आक्सर कभी-कभी अपने पौत्र-पौत्री के जन्म लेते ही एकाएक आप अपने को एक पीढ़ी ऊपर पाती हैं।

आपके बच्चे और आप

रजोनिवृति का समय ऐसा समय होता हे जब आपका मानसिक स्राव बन्द हो रहा होता है वहीं आपकी पुत्री का मासिक स्राव शुरू हो रहा होता है या हो चुका होता है। जिस प्रकार हारमोंस के असंतुलन से आपकी मानसिक स्थिति बदलती रहती है उसी प्रकार के परिवर्तन आपकी किसी पुत्री में भी हो रहे होते हैं फलतः पीढियों के टकराव के साथ-साथ ये दो असंतुलित मन जब टकराते हैं तो कभी कभी विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। ये छोटी मोटी कहा-सुनी से लेकर बड़े झगड़े या डिप्रेशनतक कुछ भी हो सकती हैं। आपकी नीति-शिक्षा व उनके लिए अधिक चिन्ता करना हो सकता है,आपके बच्चों को रास न आ रहा हो। हो सकता है एक दिन आपको ये सुनने को भी मिल जाये कि आप उन्हें हमेशा टोकती रहती हैं,वह अब समझदार हैं अपना-भला बुरा खुद समझते हैं। ऐसे में आपको बहुत बुरा लगता है कि आपने तो इनके लिये जिंदगी खपा दीपर उस सारे बलिदानके बाद आपको क्या मिला?ऐसी परिस्थितियों से बचिए। बच्चे बड़े हो चले हैंवे एक जिम्मेदार पुरूष या स्त्री बन चुके हैं,इस बात को खुले मन से स्वीकार कीजिए। उन्हें बच्चे नहीं दोस्त मानिए। उनकी राय को महत्व दीजिए। उन्हें स्वयं सोचने दीजिए, आगे बढ़ने दीजिए, उन पर अपनी राय न थोपिए। इस प्रकार आप बेकार के झंझट से बच जाएंगीं।

ऐसा भी हो सकता है कि आपके बच्चे आप को छोड़कर नौकरी आदि के सिलसिले में बाहर रहने जा रहे हों। इस समय हो सकता है कि अपरोक्ष रूप से आप अपने लड़के के स्नेह व उस पर अधिकार के लिये अपनी बहू से प्रतिस्पर्धा महसूस करने लगें। यदि ऐसा है तो यकीन मानिए इससे समस्या का समाधान नहीं होने वाला। बहू को अपने लड़के के जीवन की अति महत्वपूर्ण महिला स्वीकारने से हिचकिए नहीं। ये अधिकारों का अतिक्रमण नहीं हैमात्र सामान्य हस्तांतरण है। इसे सामान्य रूप में ही स्वीकारिए।

आप और आपकी तीसरी पीढ़ी

अक्सर ये देखा गया है कि अपने बच्चों की संतान पैदा होते ही महिलायें अपने आप को बूढ़ा मानने लगती हैं। अपने पहनन-ओढ़ने,मेकअप,फैशन और रहन-सहन के प्रति उनके दृष्टिकोण बदलने लगते हैं। कुछ मनोचिकित्सकों का तर्क है कि अवचेतन मस्तिष्क में आपको अपने बच्चों की संतान देखकर एक डिप्रेशनहोता है कि आप अब इसमें सक्षम नहीं रहीं। आप कभी-कभी अपनी इस हीनताको अपने आप को अन्य क्षेत्रों में सबसे ऊपर बनाये रखने की कोशिश करकेदबाने का प्रयास करतीं हैं। परोक्ष रूप में इसकी परिणित अपने पौत्र-प्रपौत्र के प्रति अत्यधिक स्नेह दर्शाने में व अपने बच्चों या बहू को नवजात शिशु की आवश्यकताएं व उसके पालन पोषण  के विषय में अनाड़ी सिद्ध करने में होती है। ऐसे में आपका व्यवहार अधिक जिम्मेदाराना और अधिकारिक होने लगता है। ये सच है कि अनुभव के आधार पर आप इस विषय में कुशल हों पर तथ्य तो वक्त के साथ बदलते रहते हैं जैसे अब जमोघा भूत की छाया नहीं रहीअपितु टेटनस की बीमारी की तरह सर्वविदित है। अपने अनुभवों को नये ज्ञान की रोशनी से मिलाइएजरूरत पड़े तो उनमें परिवर्तन कीजिए,बच्चों के नये विचारों से मिल कर चलिए। सहिष्णु बनिए………अधिकारिक नहीं।

आप और आपके माता-पिता/सास-श्वसुर

आपके सास-श्वसुर,या फिर हो सकता है कि आपके अपने माता-पिताआपके साथ रहते हों। चूंकि बढ़ती आयु के साथ उनके विचार उनकी समस्याएं आपसे काफी भिन्न हों। आपको उनके साथ अपने व्यवहार में अधिक संयम बरतने की आवश्यकता है। हालांकि ये संयम एक कठिन कार्य है एक तो पीढ़ियों का अंतराल,दूसरे आपकी असंतुलित मनोस्थिति,एक ओर तो आपका कर्तव्य आपको उनके लिए कुछकरते रहने को प्रेरित करता है पर दूसरी ओर आप अपने आपको इसमें शारीरिक व मानसिक रूप से अयोग्य पाती हैं ऐसे में बीच का रास्ता निकालिए,अपनी शारीरिक व मानसिक स्थिति उन्हें स्पष्ट कर दीजिए। इससे वह आपके व्यावहारिक परिवर्तनों को नये दृष्टिकोण से देख सकेंगे।

आपका जीवनसाथी

रजोनिवृति के समय एक ओर जहॉं आप एक मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहीं होती हैंवहीं आपके पति भी अपनी बढ़ती आयु के साथ हुए अपने शारीरिक परिवर्तनों को सहज रूप में नहीं ले पा रहें होते हैं ऐसे में अपने को युवा सिद्ध करने के प्रयास में, हो सकता है कि वे कुछ असाधारण हरकतें करने लगें;यथा-मेहनत वाले काम,जॉंगिंग और कभी-कभी तो काफी कम आयु की महिला से मित्रता और रोमांस तक। हो सकता है कि अपने अचेतन मस्तिष्क में आप भी एक युवा और डैशिंगसाथी की कामना करने लगी हों। पर भगवान के लिये अपनी इच्छा को मूर्त रूप देने की सोचना भी मत। जब आपकी आयु मिस्टर राइटपाने की नहीं हैं। अपने पति के साथ अपने सम्बन्धों को ही नया रूप दीजिए। आपने उनके साथ एक बड़ी जिंदगी जी है। आपके पास उनके साथ बैठकर याद करने के लिए ढेर सारे अनुभव हैं। हंसने के लिये अब तक साथ-साथ की गई बहुत सारी बेवकूफियॉ हैं। उनके साथ आपका जो सम्बन्ध अब बनेगा वह आवश्यकता व भावना पर आधारित होगा, हालांकि शारीरिक सम्बन्ध भी आपके लिये वर्जित फल नहीं है। अब तो यह और अधिक सुगमसाध्य है क्योंकि अब आपको न तो गर्भधारण का खतरा है और न आपके पास समय की ही इतनी कमी है। हो सकता है कि दुर्भाग्यवश आप अब तक अपना जीवनसाथी खो चुकी हों और अपने आपको नितांत अकेला महसूस करती हों ऐसे में अपने मनोभावों को दबाइए नहीं। अपना दुख खुलकर प्रकट कीजिए। संभव हो तो अपने आस-पास के लोगों के सांत्वना भरे हाथों को ठुकराइए नहीं।

इससे पहले कि आपके परिवार के साथ आपके सम्बन्धों में कटुता आने लगे,इस पर ध्यान दीजिए। अपनी रजोनिवृति को अति गोपनीय घटना न बनाइए। नहीं तो आपके परिवारीजन आपके व्यवहार में हुये परिवर्तन को समझ नहीं सकेंगे। यदि आपको कोई शिकायत है या कोई नाराजगी है,उसे स्पष्ट शब्दों में प्रकट करिए वरना ये छोटी छोटी शिकायतें इकट्ठी होती रहेंगी और एक दिन जब इनकी प्रतिक्रियास्वरूप जरा सी बात पर जब आप उबल पडेंगी तो आपका व्यवहार लोगों को असामान्य लगेगा।

संतानहीनता

संतानहीन स्त्रियों के लिये परिवर्तनों का यह समय कुछ अधिक कष्टकारक होता है। जब भी वह एक युवा मॉं व उसके शिशु को देखती हैं उन्हें अपनी शारीरिक कमी का अहसास होता है और उन्हें डिप्रेशनहोने लगता है। अपनी भावनाओं को दबाइए मत क्योंकि यदि आप किसी को स्नेह न दे पाएं तो ये आपमें बेचारगी और चिड़चिड़ेपन का अहसास जगाता है। आप ऐसे में किसी बच्चे को गोद ले सकती हैं। कोई नर्सरी या स्कूल खोलकर या अस्पतालों व अनाथालयों में जाकर बच्चों पर अपनी ममता लुटा सकती हैं

शारीरिक परिवर्तन और दुश्चिंत्ताएं

कभी कभी जीवन के इस मोड़ पर आकर एक स्त्री को यह शक होने लगता है कि समाज व परिवार के प्रति अपने दायित्वों को वह पूरा भी कर पा रही है या नहीं? कभी-कभी तो यह सब उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ बना 1 3देते हैं। ऐसे मे धड़कन होनातेज नाड़ी,पसीना-पसीना हथेलियॉ,हाथ पांव ठंडे होना,दस्त लगना,बार-बार पेशाब आना,मुंह सूखना,थूक निगलने में परेशानी,कमजोरी,हाथों में कंपन आदि लक्षण पैदा हो सकते हैं। ऐसे में यह पता लगाना कठिन होता है कि यह लक्षण रजोनिवृति के कारण हुए शारीरिक परिवर्तनों का परिणाम हैं या किसी चिंत्ता का प्रदर्शन। अपने इन लक्षणों का कारण ढूंढने का प्रयास कीजिए। यदि आपको नींद आने में परेशानी होती है तो इसका भी कारण ढूढ़ने का प्रयास करें न कि नींद की गोलियां खरीद कर खानी शुरू कर दें। योग-साधना ओर ध्यान-चिंतन इसमें काफी मददगार साबित हो सकते हैं। अधिक कष्ट होने पर अपने डाक्टर की सलाह लें।

डिप्रेशन

ऐसे में कभी-कभी सब कुछ बहुत उदास लगने लगता है। नींद नहीं आती,हमेशा थकान रहती है। बेबात रोने को,चिल्लाने को मन करता है। छोटे-छोटे निर्णय भी आप आसानी से नहीं ले पातीं। न भूख लगती है न प्यास। शारीरिक संबंध बासी लगने लगते हैं। एक ग्लानि बोध से मन भरा रहने लगता है। आपको लगता है कि परिवार के सारे दुखों का कारण आप ही हैं। यह सारे लक्षण डिप्रेशनके हैं। कभी-कभी डिप्रेशन में व्यक्ति बहुत खाता-पीता है, बहुत सिगरेट पीता है जिससे बाद में मतली या उल्टी आ सकती है। ऐसे में आपके पति को चाहिए कि वह आपकी फिक्र करें। हो सके तो पति के साथ कुछ दिनों की छुट्टियां लेकर बाहर चली जाइए। अपने लिये श्रंगार-सामग्री खरीदिए,अच्छे कपड़े खरीदिए। संक्षेप में अपने आप से लाड़ लड़ाइएअगर अब भी आपका मूड न बदले तो अपने डाक्टर से मिलिए।

आप समाज और परिवार की महत्वपूर्ण सदस्या हैं इस बात को न भूलिए। अपने अनुभवों को दूसरों में बांटिए,नये शौक विकसित कीजिए। आप युवा लड़कियों को सफल मातृत्व की शिक्षा दे सकतीं हैं। योग,बुनाई,कढ़ाई में अपने आपको व्यस्त रख सकती हैं। सामाजिक उत्थान के कार्यों में योगदान दे सकती हैं। यह सब एक और जहां आप में आत्मविश्वास जगायेगा,वहीं समाज और परिवार के लिये आपकी उपयोगिता भी सिद्ध करेगा।

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